Patna: बिहार के परंपरागत विश्वविद्यालयों में आपने टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफों की भारी कमी की खबरें तो बहुत बार देखी और पढ़ी होंगी. लेकिन अब बिहार के हजारों छात्रों ने इसे अपनी नियती मान ली है. कई पीढ़ियां बिना प्रोफेसरों के ही पास हो गईं लेकिन अब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो सका. अगर यूनिवर्सिटी के उच्च पद खाली हों और इन पदों पर काम प्रभारी व्यक्ति के सहारे चल रहा हो कल्पना कीजिए बिहार के छात्रों के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ हो रहा है.
वीसी और रजिस्ट्रार के ऊपर कई विश्वविद्यालय का प्रभार
आपको जानकर शायद हैरत हो कि बिहार के एक कुलपति पर तीन-तीन विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है. दूसरे शब्दों में कहें तो एक ही समय में एक कुलपति तीन-तीन यूनिवर्सिटी का काम देख रहे हैं. बात सिर्फ कुलपति पद की ही क्यों हम कर रहे हैं, जिक्र रजिस्ट्रार जैसे अहम पदों की भी होनी चाहिए. राज्य में एक रजिस्ट्रार के भरोसे दो यूनिवर्सिटी का काम हो रहा है. जाहिर है कि अगर एक रजिस्ट्रार दो विश्वविद्यालयों का काम देखेंगे तो कामकाज पर असर पड़ेगा ही.
प्रोफेसर पीके वर्मा मगध विश्वविद्यालय (Magadh University) के रजिस्ट्रार हैं लेकिन इसके साथ-साथ प्रभारी रजिस्ट्रार के तौर पर आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय (Aryabhatta Knowledge University) का कामकाज भी देखते हैं.
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वहीं, प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (Lalit Narayan Mithila University) के कुलपति हैं, लेकिन इसके साथ ही इनके ऊपर पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय (Patliputra University) और ‘आर्यभट्ट ज्ञान विवि’ के भी कुलपति की जिम्मेदारी है. आर्यभट्ट ज्ञान विवि की वेबसाइट पर बकायदा इनके पद के साथ-साथ (एक्टिंग ) यानि प्रभारी लिखा हुआ है.
मंत्री-निदेशक ने समस्या पर जाहिर की लाचारी
इसी तरह प्रोफेसर एसपी सिंह पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के पिछले कई महीनों से प्रभारी वीसी बने हुए हैं. समझिए कहां दरभंगा और कहां पटना. वहीं, जब ज़ी बिहार-झारखंड ने जब कुलपतियों की कमी की शिकायत राज्य के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी और उच्च शिक्षा निदेशक रेखा कुमारी के सामने रखी तो, मंत्री और निदेशक दोनों लाचारी जाहिर करते हैं. हालांकि, दोनों जल्द ही इस समस्या के समाधान का भरोसा भी देते हैं.
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बिहार में शिक्षा का 35 हजार करोड़ से ज्यादा का बजट
दरअसल, बिहार में शिक्षा का बजट 35 हजार करोड़ से ज्यादा है. कई बार शिक्षा मंत्री खुद कहते हैं कि बिहार सरकार सबसे ज्यादा बजट शिक्षा के लिए ही आवंटित करती है. लेकिन क्या बजट आवंटन ही काफी है? अगर यूनिवर्सिटी में कुलपतियों के पद प्रभारी कुलपतियों के जरिए चलाया जा रहा है तो, सवाल उठना लाजिमी है. क्या बिहार के छात्र सिर्फ डिग्री लेने के लिए कॉलेज और यूनिवर्सिटी जाएंगे? क्या बेहतर शिक्षा प्रबंधन उनका हक नहीं है?