नई दिल्ली: दो दिन पहले हमने तालिबान (Taliban) की नई सरकार को ये सुझाव दिया था कि वो 9/11 के हमले की बरसी (9/11 Attack Anniversary) के दिन अपनी सरकार का गठन करे. वर्ष 2001 में 11 सितंबर के दिन अलकायदा के आतंकवादियों ने अमेरिका (US) पर ये हमला किया था और अब ऐसा लगता है कि तालिबानियों ने हमारा ये सुझाव मान लिया है. खबर है कि तालिबान अपनी नई सरकार का गठन 9/11 के दिन यानी 11 सितंबर के दिन ही कर सकता है.
पंजशीर के कश्मीर वाली डील
आज हम अफगानिस्तान के पंजशीर (Panjshir) में पाकिस्तानी सेना की भूमिका पर एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय खुलासा करने वाले हैं. हमें पुख्ता सूत्रों से ये जानकारी मिली है कि तालिबान ने पंजशीर पर कब्जे के लिए पाकिस्तानी सेना (Pak Army) की मदद मांगी थी और इसके बदले में कश्मीर (Kashmir) में पाकिस्तान को मदद करने का वादा किया था. यानी तालिबान ने पाकिस्तान से कहा कि आप हमें पंजशीर दो हम आपको कश्मीर देंगे. आज पाकिस्तान के पंजशीर के बदले कश्मीर वाली इसी साजिश का पर्दाफाश करेंगे.
एक दूसरे की मदद से करेंगे कब्जा
जिस पंजशीर पर आज से पहले तालिबान समेत दुनिया की कोई सेना कब्जा नहीं कर पाई, वो पंजशीर देखते ही देखते तालिबान के कब्जे में चला गया, और बिना पाकिस्तानी सेना की मदद के ये संभव ही नहीं है. इसलिए हम लगातार ये मांग कर रहे हैं पंजशीर में पाकिस्तान की भूमिका की अंतर्राष्ट्रीय जांच कराई जाए. पंजशीर पर पहले कभी तालिबान कब्जा नहीं कर पाया. 74 वर्षों से पाकिस्तान भी कश्मीर पर कब्जा करने का सपना देख रहा है. फिर भी पाकिस्तान कभी ऐसा नहीं कर पाया. लेकिन अब पाकिस्तान तालिबान की मदद करके कश्मीर पर कब्जे का सपना फिर से देखने लगा है.
इन सबके पीछे सिर्फ पाकिस्तान
अमेरिका की सेना अपने पीछे जो लाखों हथियार और आधुनिक बंदूकें छोड़ गई है. वो देर सवेर उन आतंकवादियों के हाथ लग जाएंगे जो कश्मीर पर कब्जा करना चाहते हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान बॉर्डर के रास्ते इन हथियारों की तस्करी शुरू भी हो गई है. इसके अलावा तालिबान पाकिस्तान का अहसान चुकाने के लिए कश्मीर में उसकी पूरी मदद करेगा, उसे अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों का भी साथ मिलेगा जो कई बार ये दावा कर चुका है कि उसका मिशन कश्मीर को वैसे ही आजाद कराना है जैसे तालिबान ने अफगानिस्तान को आजाद कराया है. इन सबके पीछे सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान है. पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति होने के बावजूद कश्मीर को कभी हासिल नहीं कर पाया, क्योंकि उसके सामने भारत की सेना एक मजबूत दीवार की तरह खड़ी है. लेकिन तालिबान की मदद से पाकिस्तान कश्मीर को फिर से 1990 के दौर में लेकर जाना चाहता है.
कई बार हुए भारत को हराने के दावे
पाकिस्तान के कई नेता बार-बार ये दावा कर चुके हैं कि उसके आतंकवादी भारत का खून कतरा-कतरा करके बहाएंगे और एक दिन कश्मीर ही नहीं, बल्कि दिल्ली (Delhi) में भी पाकिस्तान का झंडा फहराएंगे. 1965 का युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान के नेता जुल्फीकार अली भुट्टो ने संयुक्त राष्ट्र में पूरी दुनिया के सामने कहा था कि हम भारत के साथ एक हजार वर्षों तक युद्ध लड़ने के लिए तैयार है. इसके बाद जब वर्ष 1971 में भी पाकिस्तान भारत से युद्ध हार गया तो पाकिस्तान के क्वेटा के पाकिस्तान मिलिट्री स्टाफ कॉलेज में एक सिद्धांत (Doctrine) तैयार किया गया, जिसमें लिखा गया कि पाकिस्तान भारत से कभी भी पारंपरिक युद्ध में नहीं जीत सकता. इसलिए आतंकवाद के जरिए भारत को कमजोर करना होगा, इसके सिर्फ 9 वर्षों के बाद ही पाकिस्तान ने भारत के पंजाब और जम्मू-कश्मीर में अपने आतंकवादी भेजने शुरू कर दिए थे.
‘अफगान में क्वेटा शूरा की सरकार’
पाकिस्तान के क्वेटा में ही वर्ष 2001 में क्वेटा शूरा का गठन किया गया था. क्वेटा शूरा में तालिबान के वो नेता शामिल थे, जो वर्ष 2001 अफगानिस्तान पर अमेरिका के हमले के बाद भागकर पाकिस्तान पहुंचे थे. तालिबान के नए प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अंखूद (Mullah Hassan Akhund) और तालिबान के सुप्रीम लीडर हिबतुल्ला अखूंदजादा समेत तालिबान की सरकार में शामिल ज्यादातार आतंकवादी भी इसी क्वेटा शूरा से निकले हैं. क्वेटा बलूचिस्तान की राजधानी है जिसकी सीमाएं अफगानिस्तान से भी मिलती हैं. यानी आप कह सकते हैं कि तालिबान की नई सरकार असल में पाकिस्तान के क्वेटा शूरा की सरकार है.
तालिबान को रास्ते सुझा रहा PAK
पंजशीर में तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले नॉर्थन एलाइंस के कई नेताओं ने भी बार बार ये दावा किया था कि पंजशीर की लड़ाई में तालिबान के साथ पाकिस्तान की सेना भी शामिल है. नॉर्थन एलाइंस ने तो ये भी दावा किया था उनके नेता फहीम दश्ती की मौत भी पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए एक ड्रोन हमले में हुई है. नॉर्थन एलाइंस के नेता और अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Amrullah Saleh) ने कुछ दिनों पहले कहा था कि पंजशीर पर तालिबान के कब्जे का मास्टर माइंड पाकिस्तान है. ये सब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISIS के इशारे पर हो रहा है. अमरुल्लाह सालेह का दावा था कि तालिबान के प्रवक्ताओं को हर घंटे पाकिस्तान के दूतावास से निर्देश मिलते हैं.
तालिबानियों के वेश में PAK सैनिक
अमरुल्लाह सालेह का ये भी दावा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) को ये बात अच्छी तरह पता है कि ये सारा खेल पाकिस्तान के इशारे पर चल रहा है, लेकिन फिर भी अमेरिका इस पर चुप है. नॉर्थन एलाइंस के एक और बड़े नेता अहमद मसूद (Ahmad Masood) ने भी दावा किया था कि पंजशीर की लड़ाई में पाकिस्तान तालिबान की मदद कर रहा है. कुछ दिनों पहले पंजशीर में मारे गए एक तालिबानी लड़ाके के पास से पाकिस्तान का ICard मिला थे. इससे भी साफ होता है कि पाकिस्तान ने तालिबानियों के भेष में अपने सैनिकों को पंजशीर में उतारा था. ईरान भी पाकिस्तान पर शक जाहिर कर चुका है और उसने भी कहा है कि वो पंजशीर में पाकिस्तान की भूमिका की जांच करेगा.
काबुल में मौजूद है ISI चीफ
हमारे अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी चैनल WION ने ईरान के पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमद दिनेजाद का एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू किया था. इस इंटरव्यू में उन्होंने भी ये दावा किया था कि पंजशीर की लड़ाई में पाकिस्तान की सेना ने न सिर्फ तालिबान का साथ दिया, बल्कि पाकिस्तान ने ही तालिबान को जन्म भी दिया है. पाकिस्तान हमेशा से चाहता था कि काबुल में वो अपनी एक कठपुतली सरकार बिठा दे, जिसमें पाकिस्तान के हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों को बड़ी भूमिकाएं मिले और फिर इन्हीं के सहारे वो कश्मीर को नुकसान पहुंचाए. जब तालिबान पंजशीर पर कब्जा कर रहा था तब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद (Faiz Hameed) काबुल में ही मौजूद था और वो खुद इस पूरे ऑपरेशन की निगरानी कर रहा था.
हक्कानी नेटवर्क का हो रहा इस्तेमाल
वर्ष 1996 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तब कश्मीर में आतंकवाद की घटनाएं काफी बढ़ गई थी. उस समय कश्मीर में लगभग साढ़े चार हजार आतंकवादी हमले हुए, जिनमें 1400 कश्मीरी मारे गए थे. पाकिस्तान इस बार भी ऐसा ही करने की कोशिश करेगा. इसमें हक्कानी नेटवर्क उसकी सबसे ज्यादा मदद कर सकता है. हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की एक शाखा माना जाता है. तालिबान की सरकार में इस आतंकवादी संगठन का सबसे ज्यादा प्रभाव है. सिराज़ुद्दीन हक्कानी खुद इस सरकार में गृह मंत्री हैं, और उसके चाचा खलील उर रहमान हक्कानी को रिफ्यूजी मिनिस्टर बनाया गया है.
अफगान में शिफ्ट होंगे आतंकी कैंप!
काबुल पर कब्जा करने के बाद हक्कानी नेटवर्क के 10 हजार आतंकवादियों का काम अब खत्म हो चुका है. ये आतंकवादी अब किसी मिशन पर नहीं हैं. लेकिन हो सकता है कि हक्कानी नेटवर्क इन्हें कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के काम पर लगा दे. एक और बड़ी बात ये है कि 2019 में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी और कई आतंकवादी कैंप्स के बारे में भी सुरक्षा एजेंसियों ने जानकारी जुटाई थी. लेकिन अब हो सकता है कि ये आतंकवादी कैंप्स अफगानिस्तान में शिफ्ट हो जाएंगे, और वहां से कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश करें.
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