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विधानसभा अध्यक्ष का फैसला लोकतंत्र में नैतिकता की राजनीति को बढ़ावा देना बेहद जरूरी

शिमला 29 फरवरी 2024: सुक्खू सरकार के लिए चल रहे सियासी संकट के बीच राजनीतिक गर्मी और बढ़ गई है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने आज वीरवार को यहां अपने एक फैसले में कांग्रेस के सभी 6 बागी सदस्यों की विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी। विधानसभा अध्यक्ष ने यह फैसला ट्रिब्युनल के अध्यक्ष के रूप में सुनाया। विधानसभा अध्यक्ष को संविधान के शेड्यूल 10 के तहत ट्रिब्युनल की शक्तियां प्राप्त हैं। कांग्रेस के जिन 6 बागी विधायकों को विधानसभा सदस्यता के लिए अयोग्य करार दिया गया है, उनमें सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, इंद्रदत्त लखनपाल, रवि ठाकुर, देविंद्र भुट्टो और चैतन्य शर्मा शामिल हैं। हिमाचल विधानसभा के इतिहास में अपने किसी विधायक को अयोग्य करार देने का यह पहला फैसला है। उन्होंने मीडिया को बताया कि अयोग्य करार दिए गए विधायकों को ई-मेल और व्हाट्सएप के माध्यम से पार्टी व्हिप के उल्लंघन के मामले में हुई सुनवाई में हाजिर होने की सूचना दी गई थी और इन दोनों माध्यमों की कानूनी तौर पर भी मान्यता है। उन्होंने कहा कि वैसे भी हिमाचल प्रदेश विधानसभा प्रदेश की पहली ई-विधानसभा है। ऐसे में सदस्यों को व्यक्तिगत तौर पर किसी भी प्रकार का आदेश पहुंचाना जरूरी नहीं है।दलबदलुओं पर रोक लगाने का सही तरीका:  इन्हें विधायिका से हटाओ और चुनाव लड़ने पर रोक लगाओ – अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर

हिमाचल हाई कोर्ट के अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर का कहना है कि दलबदलुओं पर रोक लगाने का सही तरीका यह है कि दलबदलुओं को विधायिका से हटा दिया जाए और उनकी सीट खाली घोषित कर दी जाए तथा उनकी भविष्य में चुनाव लड़ने व उन्हें मिलने वाली पेन्शन पर रोक लगा दी जाए। किसी विशेष पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने के बाद दलबदल करना मतदाताओं की तरफ से उस उम्मीदवार पर व्यक्त किए गए भरोसे के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। अधिवक्ता वीरेंद्र ठाकुर ने विधानसभा अध्यक्ष के दल-बदल विरोधी कानून के तहत 6 विधायकों की सदस्यता को खत्म करने के फैसले को ऐतिहासिक फैसला बताया है। राजनीति को एक नौकरी की तरह मानते हैं… दल-बदल विरोधी कानून में खामियों का फायदा उठा रहे नेता राजनीति में इन दिनों अधिकतर नेता दल-बदल विरोधी कानून की खामियों का फायदा उठा रहे हैं। ये नेता पार्टी समर्थक राजनीति को एक नौकरी की तरह मानते हैं। वे किसी भी एक दल में तब तक ही रहते हैं जब तक वहां रहना उनके अनुकूल होता हो। ऐसा नहीं होने पर वे तुरंत पाला बदल लेते हैं। बता दें कि भारत में एक दल-बदल विरोधी कानून है जो व्यक्तिगत सांसदों/विधायकों को एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने से दंडित करता है, लेकिन सांसदों/विधायकों के एक समूह (दो-तिहाई) को दल-बदल के लिए जुर्माना लगाए बिना किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय करने की अनुमति देता है। कानून राजनीतिक दलों को दलबदलू विधायकों को प्रोत्साहित करने या स्वीकार करने के लिए दंडित नहीं करता है। यह खुदरा व्यापार पर रोक लगाता है लेकिन थोक व्यापार की अनुमति देता है।लोकतंत्र में नैतिकता की राजनीति को बढ़ावा जरूरी : स्पीकर हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने अपने फैसले में हिमाचल विधानसभा में घटित सारे घटनाक्रम का जिक्र किया है और सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह इस बारे में अपने दिशा निर्देशों पर फिर से दृष्टि डाले ताकि लोकतंत्र में नैतिकता की राजनीति को बढ़ावा दिया जा सके। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अयोग्य करार दिए गए सभी विधायक हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट जाने को स्वतंत्र है।