
काश होती मेरी भी
एक छोटी सी टोली
समझती जो मेरी हर बात
और वो मेरी हर बोली
जो कुछ कहता मैं
कभी बढ़ा चढ़ा कर
वो सच साबित कर देती
उसे हां में हां मिलाकर
इतना आसान भी नहीं है
यहां पर रहना
कब तक नज़रंदाज़ करेंगे
मुश्किल है कहना
कर लो स्वीकार तुम
उनकी दासता
किसी और से न रखो
तुम और वास्ता
अपना लेंगे तुम्हें सहर्ष
यही बचा है अब रास्ता
एक बार करके देख
उनके साथ तू नाश्ता।
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