नई दिल्ली: नकली अचारण की तरह नकली प्रचार भी एक बुलबुले की तरह होता है, जो एक ना एक दिन फूट ही जाता है. अमेरिका खुद को दुनिया की सबसे बड़ा सुपर पावर बताता है लेकिन सच तो ये है कि वो न तो लाखों करोड़ों रुपये खर्च करके आतंकवाद को जड़ से खत्म कर पाया और न ही कोविड से अपने लोगों की जान बचा पाया. अब भी दुनिया में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले अमेरिका में दर्ज हो रहे हैं.
अमेरिका में मौजूदा स्थिति 1918 के स्पैनिश फ्लू (Spanish Flu) से भी ज्यादा खराब है. स्पैनिश फ्लू में अमेरिका के 6 लाख 75 हजार लोग मारे गए थे. जबकि कोरोना से अब तक वहां 6 लाख 75 हजार 400 लोगों की मौत हो चुकी है और ये सिलसिला अब भी थमा नहीं है. पूरी दुनिया की कुल आबादी में अमेरिका की हिस्सेदारी सिर्फ 4.2 प्रतिशत है. लेकिन कोरोना से दुनिया में हुई कुल मौतों में उसकी हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है.
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अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में नेशनल मॉल के पास साढ़े 6 लाख छोटे-छोटे सफेद झंडे लगाए गए हैं और इनपर उन लोगों के नाम लिखे गए हैं, जिनकी कोरोना से मौत हो गई. ऐसा करके अमेरिका इन लोगों को श्रद्धांजलि दे रहा है. लेकिन हमें लगता है कि ये साढ़े 6 लाख झंडे वहां से एक मिनट की दूरी पर मौजूद अमेरिका की संसद को ये याद दिला रहे हैं कि वो सुपर पावर होते हुए भी इन लोगों को बचा नहीं पाया.
हमने भारत से 13 हजार किलोमीटर दूर अमेरिका के इस नेशनल मॉल से आपके लिए एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको ये बताएगी कि कोरोना के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में अमेरिका की कितनी बुरी हार हुई है.
देखें ये रिपोर्ट
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन कोविड समिट कर रहे हैं और इस समिट का मकसद अमेरिका के साथ पूरी दुनिया से कोरोना को समाप्त करना है. यानी जो देश इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है, वहीं इसपर दुनिया को उपदेश दे रहा है और ये बता रहा है कि ये महामारी कैसे खत्म होगी.