



पवन दुर्गम/बीजापुरः एक वक्त था जब दक्षिण बस्तर के अंदरूनी नक्सल प्रभावित गांवों से हेल्थ टीम को ग्रामीण बेरंग लौटा देते थे. क्योंकि नक्सल विचारधारा से प्रभावित इन ग्रामीणों को न तो स्वास्थ्य टीम से कोई वास्ता होता है और उनके मन भी इनके प्रति डर भी होता था. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. क्योंकि अब ग्रामीणों का स्वास्थ्य टीम पर विश्वास बढ़ने लगा है.
कम हो रहा है ग्रामीणों का डर
दरअसल, कोरोना की अफवाहों से डरे आदिवासियों का डर अब हेल्थ टीम धीरे धीरे कम करने में कामयाब हो रही है. इसीका नतीजा है कि अब अति नक्सल प्रभावित छत्तीसगड़- तेलांगाना इंटर स्टेट कॉरिडोर पामेड़ में स्वास्थ्य विभाग ने कैंप लगाया है. खास बात यह है कि ग्रामीण भी अपना इलाज कराने यहां पहुंच रहे हैं. जिससे ग्रामीणों को फायदा मिल रहा है.
यहां कैंप लगाना चुनौती से कम नहीं
दरअसल, दुर्गम और जंगली इलाके पामेड़, रासपल्ली, एर्रापल्ली में पहुंचकर कैम्प लगाना किसी चुनौती से कम नहीं है. नदी नाले और कीचड़भरे रास्तों से होकर टीम इन गांवों में स्वास्थ्य कैंप लगाने पहुंची थी. खुद CMHO आर के सिंह, डॉ सुनील गौड़ अपनी टीम के साथ टीम में शामिल रहे. यहां तक पहुंचने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा नक्सली समस्या भी बनी रहती है.
इस तरह पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम
डोंगिनुमा नाव में जान जोखिम में डालकर बीजापुर जिले का स्वास्थ्य अमला नक्सल प्रभावित पामेड़, एर्रापल्ली, रासपल्ली और धर्मारम पहुंचा. जहां गर्भवती महिलाओं बच्चों और ग्रामीणों कोविड टीकाकरण किया गया है. एक वक्त था जब ग्रामीणों कोविड टीकाकरण लगाने गांव पहुंची टीम को भगाते थे. लेकिन अब स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव पहुंचकर समझाइश भी दे रही है. जिसका असर आदिवासी ग्रामीणों पर दिख रहा है. यही वजह है कि आदिवासी ग्रामीण टीकाकरण सहित अन्य इलाज के लिए तैयार हो रहे हैं.
उफनती चिंतावागु में डोंगिनुमा नाव से ईलाज कराने नजदीकी हॉस्पिटल लाते ग्रामीणों की नदी में डूब जाने से कई बार मौत भी हो जाती थी. अभी भी वहां ऐसी स्थिति बारिश के दिनों में होती है. नक्सल प्रभावित चुनौतीपूर्ण इलाकों में इलाज आसान नहीं होता है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के उन डोंगिनुमा नाव से गांव मे पहुंचने से ग्रामीणों का भरोसा अब लोगों में बढ़ेगा. उम्मीद है कि जल्द ही यहां स्थिति और सुधरेगी.
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