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District head Rama Devi Chopra who was vocal for chair infatuation remained silent in first meeting | Jaipur: कुर्सी मोह के लिए मुखर रहीं जिला प्रमुख रमा चोपड़ा, पहली बैठक में हुईं खामोश

Jaipur: किस्सा कुर्सी का हैं. जयपुर जिला प्रमुख रमा देवी चोपड़ा (Rama Devi Chopra) ‘कुर्सी’ को लेकर चर्चाओं में हैं. होशियारी पर भारी जानकारी या जानकारी पर भारी होशियारी. दरअसल यह सवाल जयपुर के नवनिर्वाचित जिला प्रमुख रमा चोपड़ा के आचरण को देखकर उठता हैं. जयपुर में जिला सतर्कता समिति (District Vigilance Committee) की बैठक का आयोजन किया गया है. 

इस बैठक में अध्यक्षता जिला कलेक्टर अंतर सिंह नेहरा (Antar Singh Nehra) को करनी थी. सदस्य के रूप में जिला प्रमुख रमा चोपड़ा, विधायकों को भी शामिल होना था. बैठक की अध्यक्षता नियमों के मुताबिक जिला कलेक्टर करते हैं. लेकिन रीट परीक्षा (REET Exam) की तैयारी बैठकों में व्यस्त होने के चलते जिला कलेक्टर इस बैठक में नहीं पहुंचे. इसके बाद जिला सतर्कता समिति की बैठक में भी किस्सा कुर्सी का शुरू हो गया. दरअसल जिला प्रमुख रमा चोपड़ा ने बैठक की अध्यक्षता की मंशा को खुद ही शक्ल देते हुए बैठक को चेयर करने जिला प्रमुख कलेक्टर की कुर्सी पर बैठ गई. इस बैठक में ग्रामीण क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों के नाते विधायक रामलाल शर्मा, बाबूलाल नागर, और लक्ष्मण मीणा भी मौजूद थे. 

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क्या कहते हैं नियम
दरअसल प्रशासन में हर बैठक और कमेटी के नियम बने हुए हैं. 20 अक्टूबर 1983 को प्रशासनिक सुधार विभाग की तरफ से जारी किए गए जिला सतर्कता समिति के गठन और नियमों के मुताबिक जिला कलेक्टर (District Collector) की बैठक की अध्यक्षता कर सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर जिला प्रमुख रमा चोपड़ा (Rama Chopra) ने किस हैसियत से बैठक की अध्यक्षता की. सवाल यह भी उठता है कि क्या जिला प्रमुख को इस बैठक की अध्यक्षता करने का अधिकार था ? नियमों के मुताबिक अगर बैठक की अध्यक्षता का दायित्व संभालने वाले जिला कलेक्टर गैर मौजूद थे तो इस स्थिति में सेकंड ऑफिसर इन कमांड यानि अतिरिक्त जिला कलेक्टर बैठक की अध्यक्षता कर सकते थे. एडीएम सेकंड इस बैठक में मौजूद भी थे लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या एडीएम द्वितीय ने जिला प्रमुख के इस आचरण पर आपत्ति जताई. इसके साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की तरफ से भी नियमों की अविज्ञता कहें या अनदेखी. रमा चोपड़ा की तरफ से बैठक चेयर करने पर बीजेपी या कांग्रेस ने कोई आपत्ति नहीं जताई.

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क्या यह है कुर्सी का मोह
जिला प्रमुख रमा चोपड़ा के इस आचरण को देखकर कांग्रेस और बीजेपी (Congress And BJP) के नेताओं के साथ प्रशासनिक अधिकारी भी इसे कुर्सी के मोह की संज्ञा दे रहे हैं. जिला प्रमुख के आचरण को लेकर चर्चा इस बात की भी है कि पिछले दिनों कुर्सी के मोह के चलते ही जिला प्रमुख के चुनाव में उन्होंने पाला बदल लिया था. कांग्रेस के टिकट पर जिला परिषद सदस्य का चुनाव जीतने वाली रामा चोपड़ा ने जिला प्रमुख के निर्वाचन के दिन ही बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की और तत्काल बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन दाखिल कर दिया था. सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या रमा चोपड़ा को नियमों की जानकारी वास्तव में नहीं थी या उन्होंने नियमों की अनदेखी की और अध्यक्ष की कुर्सी पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश की.

जिला प्रमुख ने की बैठक की अध्यक्षता लेकिन पूरी बैठक में साधे रखी चुप्पी
अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने की लालसा तो जिला प्रमुख रमा देवी चौपड़ा नहीं रोक पाई. लेकिन इस कुर्सी की जो जिम्मेदारी होती है वह किस हद तक निभाने में उन्होंने अपनी क्षमता दिखाई इसको लेकर तब सवाल खड़े हुए जब पूरी बैठक के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी. दरअसल जिला प्रमुख के रूप में रमा चोपड़ा के लिए यह पहली बड़ी जिम्मेदारी है उन्हें इससे पहले ना तो राजनीति में किसी बड़े पद पर काम करने की समझ है ना ही प्रशासनिक कार्यशैली की जानकारी. इसके बावजूद उन्होंने अपना रुतबा दिखाने की कोशिश करते हुए जिला सतर्कता समिति की बैठक को चेयर तो किया लेकिन उस चेयर पर वह ‘गूंगी गुड़िया’ की तरह ही बैठी रही. सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या जिला प्रमुख को इस कुर्सी पर बैठने के लिए किसी की तरफ से उकसाया गया. राजनीतिक हलकों में चर्चा इस बात की है कि पहले जिस तरह पंचायतीराज में सरपंच पति और प्रधान पति की एक टर्म हुआ करती थी. उसी तर्ज पर पिछले दिनों महापौर पति के बाद अब प्रमुख पति की टर्मिनोलॉजी भी जयपुर जिले की राजनीति में नए-नए रंग दिखा रही है.

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जनप्रतिनिधियों के प्रशिक्षण की होनी चाहिए व्यवस्था
इस मामले के बाद अब कलेक्ट्रेट और जिला परिषद के गलियारों में चर्चा है की जिस तरह से सभी स्तर के अधिकारियों को ओटीएस, आईजीपीआएस सहित अन्य जगहों पर प्रशिक्षण (Training) दिया जाता हैं. उसी तरह से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को नियम-कायदों से रूबरू करवाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना बहुत जरूरी हैं क्योंकि अधिकतर जनप्रतिनिधि नियम-कानून से अनभिज्ञ होने के कारण नियम-कायदे ताक पर रख देते हैं.

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जिला सतर्कता समिति में ये होते अध्यक्ष और सदस्य-सचिव
1-जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट- अध्यक्ष
2-जिला पुलिस अधीक्षक- सदस्य
3-जिले के समस्त संसद सदस्य और विधान सभा सदस्य-सदस्य
4-जिला प्रमुख-सदस्य
5-SC-ST में से प्रत्येक का सरकार द्वारा मनोनीत किया जाएगा-सदस्य
6-क्षेत्रीय-जोनल अधिकारी, जिन्हें जब भी आवश्यक होगी, अध्यक्ष द्वारा सहयोजित किया जाएगा- सदस्य
7-सहकारी बैंक, भूमि बन्धक बैंक, भूमि विकास बैंक का प्रतिनिधी, जिसे जब आवश्यक होगा अध्यक्ष द्वारा सहवृत किया जाएगा-सदस्य
8-एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता जिसे राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किया जाएगा-सदस्य
9-सचिव नगर सुधार न्यास (यदि कोई हो)-सदस्य
10-प्रशासक/अध्यक्ष, नगर परिषद (बोर्ड)-सदस्य
11-सम्बन्धित विभाग / स्वशासी निकाय की जिला स्तरीय अधिकारी-सदस्य
12-अपर जिला मजिस्ट्रेट एवं कलक्टर (जब कोई अपर जिला मजिस्ट्रेट नहीं हो तो अपर जिला विकास अधिकारी)- सदस्य-सचिव

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