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history of akhada Know about its importance and tradition from history smup | क्या होतें हैं अखाड़े, जानिए इतिहास से लेकर इनके महत्व और परंपरा के बारे में

नई दिल्ली: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व निरंजनी अखाड़े के महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) को बुधवार, 22 सितंबर को भू-समाधि दी जाएगी. इसके पहले सभी तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधि नरेंद्र गिरी के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि देंगे. उसके बाद उनके शव को संत परंपरा के अनुसार समाधि दी जाएगी. इस समय महंत नरेंद्र गिरी और अखाड़ों की चर्चा जोरों पर है, आखिर ये अखाड़े क्या होते हैं, और इनका क्या महत्व है, आइए जानते हैं…

जानिए क्या होते हैं अखाड़े? 
शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्‍थापना के लिए देश के चार कोनों में चार पीठों का निर्माण किया. माना जाता है कि उन्‍होंने मठों-मंदिरों की संपत्ति की रक्षा करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में ‘अखाड़ों’ की शुरुआत की. दरअसल साधु-संतों का समूह होता है, जो अध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ शस्त्र विद्या में भी पारंगत माने जाते हैं. देश में आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपने सैन्‍य चरित्र को त्‍याग दिया. इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करें. 

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अखाड़ों की संख्या कितनी है?
शुरू में सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया. इस समय देश में 13 अखाड़े हैं. सनातन परंपरा के ये सभी 13 अखाड़े तीन मतों में बंटे हुए हैं. यह तीन मत हैं शैव संप्रदाय, वैरागी वैष्णव संप्रदाय, और उदासीन संप्रदाय. शैव वह हैं, जिनके अधिष्ठाता भगवान शिव हैं. वैरागी वैष्णव संप्रदाय श्रीहरि को अभीष्ठ मानते हैं. उदासीन संप्रदाय प्रकृति को ही ईश्वर मानकर अपना अभीष्ठ मानते हैं. कुंभ और अर्धकुंभ में इन अखाड़ों की भूमिका होती है. साल 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जिसके वर्तमान में अध्यक्ष नरेंद्र गिरी थे.

इन नामों से जाने जाते हैं तीनों ही मतों के अखाड़े 
शैव संप्रदाय- आवाह्न, अटल, आनंद, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, जूना अखाड़ा
वैष्णव संप्रदाय– निर्मोही, दिगंबर, निर्वाणी
उदासीन संप्रदाय– बड़ा उदासीन, नया उदासीन निर्मल संप्रदाय- निर्मल अखाड़ा

निरंजनी अखाड़ा
निरंजनी अखाड़े की गिनती देश के बड़े और प्रमुख अखाड़ों में होती है, यह सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है. इसमें खासे पढ़े लिखे साधु भी हैं. इसका मुख्य आश्रम मायापुर, हरिद्वार में स्थित है. इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्र्चर हैं. इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं. इस अखाड़े की स्थापना 826 ईसवी में हुई थी. नरेंद्र गिरी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद केअध्यक्ष होने के साथ ही निरंजनी अखाड़े के सचिव भी थे. 

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