नई दिल्ली: आज हिन्दी दिवस है और इस मौके पर हम आपसे एक सवाल पूछेंगे कि हिन्दी आपकी मातृभाषा है या आपके लिए मात्र एक भाषा है? आज ही के दिन वर्ष 1949 में संविधान सभा ने हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था. कई बार लोग राजभाषा और राष्ट्रभाषा को एक ही मान लेते हैं, लेकिन भारत के संविधान में राष्ट्रभाषा का कोई उल्लेख नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 343 में लिखा है कि देश की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी.
अंग्रेज चले गए लेकिन अंग्रेजी नहीं
महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि जैसे ब्रिटेन में अंग्रेजी बोली जाती है और सारे कामकाज अंग्रेजी में होते हैं वैसे ही हिन्दी को हमारे देश में राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलना चाहिए. लेकिन महात्मा गांधी का ये सपना आज तक पूरा नहीं हुआ. हमारे देश से अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अंग्रेजी भाषा कभी नहीं गई.
वैसे तो हिन्दी भाषा का सफर साढ़े तीन हजार साल पुराना है, लेकिन आज जिस हिन्दी भाषा को हम लिखते, बोलते हैं, उसकी उम्र ज्यादा नहीं है. ये सिर्फ 120 साल की है. हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो हजारों वर्षों के बाद विकसित हुई और इसने हर दौर के मुताबिक खुद को बदला. इसलिए जो लोग समय के साथ खुद को अपडेट नहीं कर पाते, वो हिन्दी भाषा से काफी कुछ सीख सकते हैं.
कैसे हुआ हिन्दी का विकास
हिन्दी को संस्कृत भाषा का आसान रूप माना जाता है. सनातन धर्म में ऋग्वेद से लिखित भाषा की शुरुआत मानी जाती है. ये भाषा संस्कृत थी और ये बात डेढ़ हजार ईसा पूर्व की है. महाकाव्य रामायण और महाभारत भी एक हजार ईसा पूर्व संस्कृत भाषा में लिखे गए थे. संस्कृति का विस्तार और प्रभाव समय के साथ बढ़ा जरूर लेकिन 500 ईसा पूर्व अपभ्रंश की शुरुआत हुई, जिसका अर्थ था संस्कृत भाषा का एक और सरल रूप.
दसवीं शताब्दी में हिन्दी की पहली रचना खुमान रासो ने आकार लिया, जिसमें चित्तौड़ के राजा रावल खुमान की कहानी थी. इसके बाद 13वीं शताब्दी में हिन्दी खड़ी बोली के पहले लोकप्रिय कवि आमिर खुसरो ने फारसी और हिन्दी में कई पहेलियां और गीत लिखे. लेकिन 18वीं शताब्दी में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने उस हिन्दी भाषा की नींव रखी जो आज हम लिखते बोलते हैं.
इसके लिए उन्हें आधुनिक हिन्दी साहित्य का पितामह भी कहा गया. वर्ष 1900 से आज की हिन्दी भाषा के इस्तेमाल का चलन बढ़ा और जितने भी बड़े स्वतंत्रता आन्दोलन हुए, उन्हें इसी भाषा ने आवाज दी.
पीछे छूटती चली गई हिन्दी
हिन्दी भाषा की इसी सरलता और सौम्यता ने उसे सहनशील भी बनाया. भारत में हिन्दी भाषा को उर्दू भाषा के साथ मिला जुला कर भी बोला गया और लोगों ने अंग्रेजी के साथ हिन्दी बोलने की भी आदत डाली. जैसे सुप्रभात और शुभ रात्रि की जगह लोगों ने Good Morning और Good Night कहने की आदत डाल ली. दिनांक की जगह उर्दू के शब्द तारीख ने ले ली और मित्र उर्दू भाषा के ही एक और शब्द यार से पीछे रह गया.
ये हिन्दी की ही सहनशीलता थी कि भारत में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ असहयोग आन्दोलन भी हुआ और खिलाफत आन्दोलन भी हुआ. 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपना भाषण सिर्फ अंग्रेजी में ही दिया था, जो A Tryst With Destiny के नाम से इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है. हिन्दी में इसका अर्थ होता है नियति से साक्षात्कार. सोचिए, अंग्रेजो से आजादी मिलने पर अंग्रेजी में ही भाषण दिया गया.
हमारे देश का संविधान भी मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में ही लिखा है, जहां सैकड़ों बार India शब्द का इस्तेमाल किया गया है. भारत के संविधान की शुरुआत में लिखा गया है India, that is Bharat यानी India जो कि भारत है. इससे ऐसा ही लगता है, जैसे India शब्द को ज्यादा प्रमुखता दी गई है.
हिन्दी भाषा के प्रति इसी हीन भावना के कारण मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने एक बार कहा था, ‘हिन्दी दिवस के दिन हिन्दी बोलने वाले दूसरे हिन्दी बोलने वालों से कहते हैं कि हिन्दी में बोलना चाहिए’. ये हमारे देश के लोगों का सबसे बड़ा सच है.
दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा
एक अध्ययन के मुताबिक हमारे देश के 90 प्रतिशत ऐसे लोग, जो अंग्रेजी बोलना नहीं जानते, वो भी हस्ताक्षर अंग्रेजी में करते हैं. इसके पीछे हिन्दी के प्रति हीन भावना तो ही है, साथ ही व्यवस्था का भी दोष है. कई कामों में आज भी हस्ताक्षर का मतलब अंग्रेजी भाषा में अपना नाम लिखना है और अंगूठा लगाने का मतलब हिन्दी भाषी लोगों से है. ये स्थिति भी तब है जब हिन्दी पूरी दुनिया में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है.
पहले स्थान पर अंग्रेजी भाषा है, जिसे दुनियाभर में 135 करोड़ लोग बोलते हैं. दूसरे स्थान पर चीन की Mandarin भाषा है, जिसे 120 करोड़ लोग बोलते हैं. तीसरे स्थान पर हिन्दी है, जिसे 75 करोड़ लोग बोलते हैं. चौथे पर 54 करोड़ लोगों के साथ स्पेनिश और लगभग 28 करोड़ों लोगों के साथ अरबी भाषा पाचवें स्थान पर है.
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में लगभग 53 करोड़ लोग हिन्दी में बोल और लिख पाते थे. जबकि 2001 में केवल 41 करोड़ लोग ही हिन्दी में बोल लिख पाते थे. वर्ष 2014 में सिर्फ 12 करोड़ लोग ही हिन्दी के अखबार पढ़ते थे. लेकिन आज देश में हिन्दी के अखबार पढ़ने वालों की संख्या 18 करोड़ 60 लाख हो चुकी है.
नौकरी की भाषा नहीं बन पाई हिन्दी
गूगल के एक अध्ययन के मुताबिक इस साल के अंत तक भारत में इंटरनेट पर हिन्दी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या, अंग्रेजी का इस्तेमाल करने वालों से ज्यादा हो जाएगी. ये संख्या करीब 38 प्रतिशत होगी. ये आंकड़े हिन्दी भाषा के उज्जवल भविष्य का संकेत तो देते हैं लेकिन ये भी सच है कि भारत में हिन्दी करोड़ों लोगों की मातृभाषा तो है, लेकिन इसकी मौजूदा स्थिति मात्र एक भाषा की है. इसका सबसे बड़ा कारण है, हिन्दी भाषा आज तक नौकरी की भाषा नहीं बन पाई है.
हिन्दी देश की राजभाषा है लेकिन फिर भी ऐसा क्यों है कि लोग अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में भेजना चाहते हैं. हिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी मातृभाषा है लेकिन देश के कई राज्यों में जिनमें हिन्दी बोली जाती है, वहां भी इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों को संख्या तेजी से बढ़ी है.
बच्चों को अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाने की होड़
देश के 26 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढ़ रहे हैं. अकेले दिल्ली की ही बात करें तो 59.2 प्रतिशत बच्चों के मां-बाप ने अपने बच्चों को दाखिला इंग्लिश मीडियम स्कूलों में करवाया और इसके पीछे की मानसिकता क्या है. ये हमने जानने की कोशिश की तो लोगों का कहना था कि विश्व में कम्युनिकेट करने के लिए वह अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ने के लिए भेजते हैं.
पिछले एक साल में ही इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है. उदाहरण के तौर पर हरियाणा में सबसे अधिक 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. हरियाणा में इस वक्त 50.8 प्रतिशत बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते हैं जबकि हरियाणा एक हिन्दी भाषी प्रदेश है.
इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने के पीछे एक बड़ा कारण यही है कि बच्चे अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ बना सकें और आगे चलकर समाज की उस धारणा के ढर्रे पर चलें जिसमें अंग्रेजी के जानकार को बेहतर माना जाता है. इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या के मामले में जम्मू कश्मीर पहले नंबर पर है. यहां 100 प्रतिशत बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ते हैं. दूसरा नंबर तेलंगाना का है जहां के 73 प्रतिशत बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ते हैं. इसके बाद केरल 64.5 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश 63 प्रतिशत और फिर दिल्ली 59 प्रतिशत का नंबर आता है.
अंग्रेजी जानना और अंग्रेजी बोलना ये भारत के परिपेक्ष्य में अलग-अलग बात है. दरअसल भारत में अंग्रेजी जानने वाले बहुत हैं लेकिन बोलने वाले कम. वर्ष 2011 का जनगणना बताती है कि भारत में करीब 69 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं और करीब 12 करोड़ 80 लाख लोग अंग्रेजी में बात करते हैं.
देख जाए तो देश के आधे से ज्यादा लोग हिन्दी बोलते हैं और देश में दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाले भाषा अंग्रेजी है. इसके बावजूद इंग्लिश मीडियम शिक्षा के प्रति लोगों का रुझान ज्यादा है. दरअसल व्यवहारिक रूप से अंग्रेजी बोलने समझने वाले का सम्मान भी ज्यादा माना जाता है. यही वजह है कि कोई भी मां बाप अपने बच्चे को प्रतियोगिता के दौर में पीछे नहीं देखना चाहता है.
नीरज चोपड़ा ने दिखाई थी हिम्मत
हिन्दी दिवस पर इससे बड़ा कोई विरोधाभास नहीं होगा कि आज बहुत सारे लोगों ने हिन्दी दिवस की शुभाकामनाएं देने के लिए अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल किया. लेकिन भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त और जर्मनी के राजदूत ने भारत के लोगों को आज हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं दी हैं. इन्हें सुनने के बाद आप भी अंग्रेजी भाषा के बोझ से मुक्त हो जाएंगे और आपको अच्छा लगेगा कि जिन अंग्रेजों ने भारत पर 200 वर्षों तक शासन किया, वो आज भारत को हिन्दी भाषा में इस मौके पर शुभकामनाएं दे रहे हैं.
आज टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा का तीन साल पुराना एक वीडियो आज काफी चर्चा में हैं, जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हो रही है. इस वीडियो में वो एक पत्रकार को हिन्दी में सवाल पूछने के लिए कहते हैं. वैसे तो इसमें कुछ भी असाधारण नहीं है. लेकिन जो बात समझने की है, वो ये कि हमारे देश में बहुत सारे लोग ऐसा करने की भी हिम्मत नहीं कर पाते.