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islamic extremism terror attack in france and vienna | फ्रांस और वियना में हिंसा को अंजाम देने वालों को कहां से मिल रहा समर्थन?

नई दिल्ली, शांतनु मुखर्जी: फ्रांस की घटना के बाद पूरे यूरोप के आतंक की चपेट में आने की आशंका बढ़ गई है. ऑस्ट्रिया में आतंकी हमले को अंजाम देकर इस्लामिक आतंकवादियों ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. ऑस्ट्रिया के वियना में 2 नवंबर को कुछ अज्ञात लोगों ने अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई और 14 घायल हुए. आतंकियों का ऑस्ट्रिया को निशाना बनाना एक खतरनाक संकेत है. इसलिए भी कि लंदन, ब्रसेल्स, पेरिस सहित यूरोप के अन्य हिस्सों में हुए आतंकी हमलों की तुलना में यह देश अब तक आतंकवादियों के रडार से बाहर रहा था.

वियना पुलिस ने एक आतंकी को मार गिराया है, लेकिन बाकी अभी तक उसकी पकड़ से दूर हैं. लिहाजा, खतरा अभी टला नहीं है. सीमावर्ती देश भी सतर्क हो गए हैं, ताकि दहशतगर्दों को कोई दूसरा हमला करने से पहले दबोचा जा सके. 

इस्लामिक आतंकवाद का सामना
बमुश्किल दो हफ्ते पहले, 16 अक्टूबर को पेरिस के स्कूल टीचर सैमुएल पैटी को एक इस्लामी कट्टरपंथी द्वारा बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया. पैटी का कुसूर मात्र इतना था कि उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के कैरिकेचर के जरिये बच्चों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के फ्रांसीसी सिद्धांत के बारे में समझाने का प्रयास किया था. धर्म के नाम पर हुई इस हत्या के बाद फ्रांस के नीस शहर को भी इस्लामिक आतंकवाद का सामना करना पड़ा. यहां भी कई लोगों की जान गई. लगातार होने वाले ये घिनौने कृत्य याद दिलाते हैं कि यूरोप और खासतौर पर फ्रांस बहुत तेजी से एक असुरक्षित मोड में आ रहा है, जिससे यूरोप बहुत कमजोर बन रहा है.  

कुछ समय पहले एक पाकिस्तानी युवक ने मांस काटने वाले चाकू से कुछ फ्रांसीसी नागरिकों को घायल कर दिया था. हम पाकिस्तानी, चेचन और कुछ और इस्लामिक लोगों को चाकू जैसे घातक हथियार लेकर खुलेआम घूमते देखते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वह इतने ज्यादा कट्टर बन चुके हैं कि अपने पैगम्बर पर होने वाली किसी भी टिप्पणी का बदला लेने के लिए खून की नदियां भी बहा सकते हैं.

आग में घी डालने का काम
अब सवाल यह उठता है कि आखिर घिनौने कृत्यों को अंजाम देने वाले इन हत्यारों को इतना साहस और समर्थन मिल कहां से रहा है? प्राथमिक तौर पर देखा जाए तो इस्लामिक नेता नफरत की इस आग में घी डालने का काम कर रहे हैं. मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद से लेकर तुर्की और पाकिस्तान के नेताओं के बयान इसका जीवंत उदाहरण हैं. महातिर मोहम्मद ने न केवल खुलेआम फ्रांसीसी नागरिकों की हत्या की पैरवी की बल्कि कट्टरपंथियों को आगे भी इस तरह के कृत्य को अंजाम देने के लिए उकसाया. सबसे ज्यादा दुःख की बात यह है कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के ‘इस्लाम या इस्लामोफोबिया’ के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ने जैसे शब्दों ने नुकसान की आशंका को और बढ़ा दिया है. वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी खुद को आगे रखने की कोशिश में भड़काऊ बयान दे डाले हैं.

हिंदुओं को निशाना क्यों बनाया?
जैसे ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने देश में हुए आतंकी कृत्यों को इस्लामी आतंकवाद करार दिया, मुस्लिम देश उनके खिलाफ हो गए. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर फ्रांस के खिलाफ प्रदर्शन किया. फ्रेंच राष्ट्रपति का पुतला जलाया गया, फ्रेंच उत्पादों के बहिष्कार की मांग की गई. यहां तक कि बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं को भी निशाना बनाया गया जबकि बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों का फ्रांस में हुईं हत्याओं से कोई लेना-देना नहीं है. यह जितना अजीब है, उतनी ही गंभीर और सोचने पर मजबूर कर देने वाली बात भी है.

ये है चिंता की वजह
पेरिस को अभी सामान्य होने में कुछ वक्त लगेगा. वियना के आतंकवाद का ताजा पीड़ित बनने से आतंकवादियों द्वारा यूरोप में लक्ष्य को बारीकी से चुनने का पैटर्न एक बार फिर उजागर हुआ है. मोरक्को, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया जैसे उत्तरी अफ्रीकी देशों की आबादी काफी ज्यादा है और यहां के कई लोग बेल्जियम और हॉलैंड आदि में हुए आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं. लिहाजा, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि ‘भावनात्मक समर्थन’ में यह लोग यूरोप सहित दुनिया के अन्य देशों को अपना निशाना बनाएं और उन्हें डर के साये में जीने को मजबूर करें.

इंटेलिजेंस तंत्र नाकाम?
सिक्योरिटी एनालिस्ट इंटेलिजेंस इनपुट के प्रभावी आदान-प्रदान की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं. ताकि समय रहते जानकारी हासिल की जा सके और आतंकियों को उनके मंसूबों को अंजाम देने से पहले रोका जा सके. हालांकि, लगता नहीं है कि इस पर ठीक ढंग से अमल होता है. क्योंकि अगर होता, तो क्या विएना में आतंकी हमला संभव था? यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आखिर कैसे आतंकी अत्याधुनिक हथियारों के साथ वियना की सड़कों पर उतरते हैं और किसी को खबर भी नहीं होती? फ्रांस के मामले में भी यही है.  

धार्मिक नेताओं को आगे आना होगा
इस बीच, आतंकवादी गतिविधियों को सीमित करने के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे हैं. न ही धार्मिक रूप से कट्टरपंथी देशों के प्रतिनिधित्व वाले ध्रुवीकृत शिविरों और यूरोप के बीच सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास हुए हैं. दोनों पक्षों के शीर्ष धार्मिक नेताओं को विचार-मंथन करने की आवश्यकता है और साथ ही सुरक्षा पेशेवरों को अपने सीमा नियंत्रण तंत्र, खुफिया तंत्र को भी मजबूत करना होगा. इसके अलावा, आतंकवादियों से मुकाबले की क्षमता को भी बढ़ाना होगा. महत्वपूर्ण रूप से, उनका दृष्टिकोण सभी धर्मों को ध्यान में रखते हुए एक पेशेवर सोच पर केंद्रित होना चाहिए.

वहीं, फ्रांस और ऑस्ट्रिया के ताजा घटनाक्रम को देखते हुए भारत को भी अत्यधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है. सुरक्षा एजेंसियों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि शांति को ठेस पहुंचाने वाली कोई भी गतिविधि अमल में न आने पाए.

(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं. शांतनु मुखर्जी मॉरीशस के प्रधानमंत्री के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं)

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