



Bokaro: इस्पात नगरी बोकारो का माचाटांड- अलुवारा गांव रेलकर्मियों के गांव के नाम से प्रसिद्ध है. गांव में शायद ही कोई ऐसा परिवार है, जिसका सदस्य रेलवे में काम ना करता हो.रेलवे में काम करना माचाटांड- अलुवारा के रहवासियों का लक्ष्य और गर्व होता है.
हर दिल में बसता है रेलवे
माचाटांड- आलुवारा चंदनक्यारी प्रखंड के महुदा और तलगडिया रेलवे स्टेशन के बीच बसा है. बोकारो जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच स्थित माचाटांड- आलुवारा गांव के हर ग्रामीण में रेलवे बसता है.
युवाओं का लक्ष्य पर निशाना
गांव के हर नौजवान का फोकस रेलवे में नौकरी करना है. सुबह 4 बजे गांव का प्रत्येक नौजवान मैदान में मौजूद होता है, जहां उन्हें रेलवे में भर्ती के लिए प्रैक्टिस कराई जाती है. दौड़ से लेकर फिजिकल एक्सरसाइज की ट्रेनिंग दी जाती है.
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मजबूत कंधों पर ट्रेनिंग का दारोमदार
ट्रेनिंग देने का जिम्मा गांव के उन लोगों के कंधों पर होता है, जो रेलवे की परीक्षा पास कर चुके हैं. वहीं, ट्रेनर बनकर युवाओं को रेलवे समेत दूसरी बहालियों के लिए निशुल्क ट्रेनिंग देते हैं. युवाओं को फिजिकल टेस्ट से लेकर लिखित परीक्षा को क्रैक करने तक की ट्रिक दी जाती है.
पीढ़ी के लिए बने प्रेरणास्तोत्र
गौरतलब है कि माचाटांड- आलुवारा के लोग रेलवे में बड़ी तादाद में नौकरी करते हैं. जिनकी संख्या सैकड़ों में है. जिस वक्त महुदा और तलगड़िया रेलवे स्टेशन बन रहा था उस वक्त गांव के लोग रेलवे में भर्ती हुए.यही लोग गांव की आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्तोत्र बन गए हैं.
मदद का जज्बा बनाता है और ताकतवर
माचाटांड- आलुवारा की एक और खूबसूरत बात है, जो इसे दूसरों से जुदा करती है. दरअसल गांव के जिस भी व्यक्ति की सरकारी नौकरी लग जाती है तो, वो हर स्तर पर बाकी ग्रामीणों की मदद करते हैं. यही जज्बा और ईमानदारी गांव के हर बाशिंदे के दिल में बसी है. जो उन्हें और ताकतवर बनाती है.
(इनपुट- मृत्युंजय मिश्रा)