नई दिल्ली: गुजरात में पाटीदार समुदाय बेहद ताकतवर है. धन-बल दोनों से. भाजपा के दो दशकों से जारी विजय अभियान में इस समुदाय की बड़ी भूमिका है. 2016 में आनंदीबेन पटेल ने इस्तीफा दिया था. वह इसी समुदाय से आती हैं. भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) के हाथों में राज्य का नेतृत्व देकर भाजपा के आलाकमान ने पाटीदार कार्ड खेला है. पाटीदार समुदाय की ताकत को इस बात से समझा जा सकता है कि यह राज्य में 70 से ज्यादा चुनावी सीटों का रुख बदल सकता है. 2022 में राज्य में चुनाव से पहले भाजपा ने इसके जरिये पाटीदार समुदाय को रिझाने की कवायद में बड़ा कदम उठाया है.
बदल सकते हैं रुख
बताया जाता है कि पाटीदार समुदाय का समर्थन ही है जिसने पिछले दो दशकों से भाजपा को गुजरात में जमाकर रखा हुआ है. राज्य में पाटीदारों की ताकत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ये 182 विधान सभा क्षेत्रों में से 70 से अधिक में चुनावी नतीजों का रुख बदल सकते हैं. ये 71 निर्वाचन क्षेत्रों में तकरीबन 15 फीसदी या उससे ज्यादा मतदाता हैं. गुजरात की करीब 6 करोड़ आबादी में पाटीदार 1.5 करोड़ हैं. यह अनुमानित आबादी का 12-14 फीसदी है. पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी के वोट शेयर का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इसका लगभग एक-चौथाई हिस्सा पाटीदारों का है. 2012 में बीजेपी को मिले 48 फीसदी वोट शेयर में से 11 फीसदी पाटीदारों का था.
आखिर कौन हैं पाटीदार?
पाटीदार या पटेल खुद को भगवान राम का वंशज बताते हैं. यह समुदाय पूरे गुजरात में फैला है. उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र में इनकी आबादी काफी ज्यादा है. पाटीदार समुदाय गुजरात में आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली है. 1970 के दशक के अंत तक उनका राज्यभर में राजनीतिक दबदबा रहा है. तब यह समुदाय कांग्रेस का प्रबल समर्थक होता था. हालांकि, 1980 के दशक में कांग्रेस ने क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिमों पर फोकस बढ़ा दिया. आरक्षण को बल मिला. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर पार्टी की पॉलिसी में बड़ा शिफ्ट किया. इसने पाटीदारों को नाराज कर दिया. वे भाजपा की ओर शिफ्ट होने लगे. आज नौबत यह है कि राज्य में भाजपा के एक तिहाई विधायक पटेल हैं. मनसुख मांडविया को केंद्रीय कैबिनेट में शामिल करना भी पाटीदार समुदाय को खुश करने की कवायद थी.
पिछले कुछ समय से नाराज
पिछले कुछ समय में पाटीदार समुदाय भाजपा से नाराज रहा है. इसकी वजह है आरक्षण की मांग. समुदाय 2015 से अपने लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की मांग करता रहा है. इस आंदोलन से हार्दिक पटेल जैसे नेता उभरकर सामने आए. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में यह मांग काफी तीखी हो गई. कई जगह हिंसा की घटनाएं हुईं. हार्दिक पटेल को गिरफ्तार तक कर लिया गया. बाद में राज्य सरकार ने गरीब सवर्णों में 10 फीसदी का आरक्षण दिया. इनमें पाटीदार भी शामिल हैं.
चुनावों में दिखा असर
बीजेपी ने 2017 का चुनाव साधारण मेजोरिटी से जीता था. 2017 में उसे 99 सीटें मिलीं. जबकि 2012 चुनावों में उसे 115 सीटें मिली थीं. 2014 के लोक सभा चुनाव से पाटीदारों का वोट शेयर भी कम हुआ है. जहां 2014 के लोक सभा चुनाव में पार्टी को पाटीदारों का 60 फीसदी वोट मिला था वहीं, 2017 में यह घटकर 49.1 फीसदी रह गया.
तेज हुई रिझाने की कवायद
अगले साल गुजरात में चुनाव होने हैं, इसे देखते हुए भाजपा ने पाटीदार समुदाय को रिझाना शुरू कर दिया है. 2019 में लोक सभा चुनाव से पहले गुजरात बीजेपी सरकार का कैबिनेट विस्तार हुआ. इसमें 6 पाटीदार नेताओं को जगह मिली. 2021 में मोदी कैबिनेट का जब विस्तार हुआ तो उसमें राज्य के सात लोगों को जगह मिली. हाल में हुए केंद्रीय कैबिनेट के फेरबदल में मनसुख मांडविया और पुरुषोत्तम रुपाला को राज्यमंत्री से प्रमोट करके केंद्रीय मंत्री बनाया गया. ये दोनों पाटीदार समुदाय से आते हैं. राज्य में लगातार किसी पाटीदार को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ रही थी.
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केंद्रीय नेतृत्व का बढ़ा फोकस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 सितंबर को अहमदाबाद में ‘सरदारधाम’ का उद्घाटन करने वाले हैं. इसे विश्व पाटीदार समाज ने बनवाया है. इस पर 200 करोड़ रुपये का खर्च आया है. इसे पाटीदार समुदाय के लिए वन-स्टॉप बिजनेस, सोशल और एजुकेशनल हब के तौर पर बताया जा रहा है. बताया जाता है कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम में शिरकत करना पाटीदार समुदाय को खुश करने की ही कोशिश है.
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