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December 16, 2025 1:00 am

चांद नहीं मेरा महबूब* सुरेन्द्र शर्मा शिव

देखकर नूर तेरे चेहरे पर आज
फ़ीका पड़ गया है आसमां का चांद
शायद इसीलिए छुप गया है बादलों में कहीं
देखकर तुझे शरमा रहा है आसमां का चांद

जानता नहीं है तू आज उसके इंतज़ार में है
जान जाता तो आ जाता आसमां का चांद
फिर देखकर ख़ूबसूरती तेरी यकीनन
बादलों में खो जाता वो आसमां का चांद

ज़माने को चांद सी महबूबा चाहिए
इसी गुरूर में रहता है आसमां का चांद
मेरे महबूब पर तो लाख चांद क़ुर्बान
फिर क्या करना मुझे आसमां का चांद

ये तो आता जाता रहता है
किसी का हो नहीं सकता आसमां का चांद
ये तो पल पल बदलता है
कभी एक सा दिखता नहीं आसमां का चांद

कभी चांद से तुलना नहीं करते महबूब की
उस पर तो क़ुर्बान हज़ारों आसमां के चांद
जन्नत का अहसास होता है महबूब के साथ
जन्नत का तो अंश मात्र है आसमां का चांद।