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QUAD Summit in Washington DC- Expectations of the world | वॉशिंगटन डीसी में होने वाली क्वाड शिखर सम्मेलन से दुनिया की उम्मीदें

जब से क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (QUAD) को शुरू किया गया, एक महत्वपूर्ण प्रगति दिखाई दे रही है और संयुक्त राज्य अमेरिका में 76वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा के साथ इसके नेताओं की पहली फिजिकल मीटिंग हो रही है. अफगानिस्तान संघर्ष और AUKUS (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया द्वारा गठित एक त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन) की पृष्ठभूमि के बीच समूह की बैठक हो रही है. हालांकि क्वाड (QUAD) देश सैन्य अभ्यास करते रहे हैं और व्यापार, असैन्य परमाणु उपयोग, स्वास्थ्य और कोविड कूटनीति सहित विभिन्न मुद्दों पर सहयोग कर रहे हैं, लेकिन इसे अपनी संरचना और लक्ष्यों के साथ-साथ निष्पादन योजनाओं को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने की जरूरत है, जो अभी भी स्पष्ट नहीं हैं. दक्षिण चीन सागर (SCS) और एशिया प्रशांत में चीन के बढ़ते वर्चस्व के कारण, क्षेत्र की प्रमुख शक्तियों को शामिल करते हुए एक मजबूत राजनीतिक-सैन्य गठबंधन की आवश्यकता है और क्वाड के चार देश उसी का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे अन्य देशों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एशिया प्रशांत में चीनी विस्तारवादी आंदोलनों को सीमित करने के लिए तैयार हैं. क्वाड को सीधा खतरा मानते हुए चीन इसके बारे में काफी मुखर रहा है और विभिन्न मंचों पर इसका विरोध किया है. चूंकि इसके नेताओं की पहली फिजिकल मीटिंग व्हाइट हाउस में होने जा रही है, तो बीजिंग में निश्चित रूप से कड़े शब्दों में बयान दिया जाएगा और गंभीर नाराजगी जताई जाएगी. इस मुलाकात से काफी उम्मीदें हैं और दुनिया विभिन्न मुद्दों पर राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योशीहिदे सुगा और स्कॉट मॉरिसन जैसे नेताओं से सुनना चाहेगी. इस चर्चा में इन मुद्दों को शामिल किया जा सकता है.

दक्षिण चीन सागर में चीनी महत्वाकांक्षाएं

चीन दक्षिण चीन सागर में अपने वर्चस्व का विस्तार कर रहा है और विभिन्न द्वीप समूहों को सैन्य ठिकानों में विकसित कर रहा है. इसकी नाइन-डैश लाइन (Nine-Dash Line), जो लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर का दावा कर रही है, न केवल ताइवान, मलेशिया, ब्रुनेई, फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा है, बल्कि इस क्षेत्र के व्यपार मार्गों से गुजरने वाले अन्य देशों के लिए भी बाधा उत्पन्न कर रही है. इसने दक्षिण चीन सागर में विभिन्न प्राकृतिक और कृत्रिम द्वीपों पर बड़े सैन्य ठिकाने बनाए हैं और क्वाड के संयुक्त बयान में चीनी दावों का खंडन किया जाना चाहिए.

अन्य एशियाई देशों के साथ क्षेत्रीय विवाद

एशिया-प्रशांत में शायद ही कोई देश होगा, जिसका चीन के साथ कोई क्षेत्रीय विवाद न हो. भारत कोई अपवाद नहीं है, हमने हिमालय में युद्ध भी लड़ा है. डोकलाम और पूर्वी लद्दाख में हुई संघर्ष की यादें अभी भी ताजा हैं. ये विवाद एशिया में अस्थिरता और संघर्षों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय हैं. इसके अलावा, चीन इन मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर नहीं दिखता है. अब तक, किसी भी वैश्विक मंच ने चीन के संबंध में अन्य देशों की चिंता की वकालत नहीं की और इस तरह के क्षेत्रीय विवादों के प्रति एक मजबूत नीतिगत बयान कई दक्षिण एशियाई देशों की अपेक्षाएं हैं.

एशिया प्रशांत में शिपिंग चैनल्स की सुरक्षा

चीन खतरनाक गति से अपने सैन्य वर्चस्व का विस्तार कर रहा है और अब तक दक्षिण चीन सागर के अलावा जिबूती, ग्वादर, हंबनटोटा और कई अन्य स्थानों में प्रमुख ठिकाने बनाए हैं. ये बेस सीधे तौर पर पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख शिपिंग चैनल्स के लिए खतरा हैं और इन चैनल्स की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्वाड (QUAD) को उन्हें सुरक्षित करने के लिए अपनी नीतियों और कार्य योजनाओं को निर्दिष्ट करना होगा.

क्वाड देशों के बीच सैन्य सहयोग

हालांकि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच सैन्य सहयोग शुरू हो गया है और इन देशों ने बीते समय में मालाबार सैन्य अभ्यास सहित कई संयुक्त अभ्यास किए हैं, लेकिन अभी एक लंबा रास्ता तय करना है. चीन का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत सैन्य गठबंधन आज की जरूरत है. क्वाड नेताओं को नाटो की तर्ज पर इसकी संरचना, कार्यप्रणाली और अंतर-संचालन पर काम करना होगा. क्वाड को व्यापक रूप से एशियाई-नाटो के रूप में माना जाता है, लेकिन इसके तौर-तरीके अभी तक स्पष्ट नहीं हैं. एक प्रभावी सैन्य गठबंधन के लिए विभिन्न पहलुओं पर ड्राफ्ट तैयार करने और प्रमोट करने की आवश्यकता है.

क्वाड में अन्य क्षेत्रीय शक्तियों की भागीदारी

एशिया प्रशांत में शांति सिर्फ चार देशों पर निर्भर नहीं है. हालांकि, ये चार अर्थव्यवस्थाएं सबसे बड़ी हैं और एशिया प्रशांत में इनकी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है, लेकिन अन्य शक्तियों विशेष, रूप से आसियान देशों (ASEAN Countries) की भागीदारी के बिना चीनी विस्तार को रोकना मुश्किल होगा. इन देशों में व्यापार या अन्य पहलुओं के माध्यम से चीन का सीधा प्रभाव है और इन देशों के शामिल नहीं होने पर क्वाड (QUAD) के प्रयासों में बाधा आ सकती है. क्वाड नेताओं को अन्य देशों को शामिल करने के लिए एक योजना तैयार करनी होगी, जो न केवल क्वाड की सफलता में मदद करेगी, बल्कि इस क्षेत्र में बेहतर अंतःक्रियाशीलता और आपसी सहयोग में भी मदद करेगी. हाल ही में गठित AUKUS गठबंधन क्वाड के ऊपर एक परत बना रहा है और क्वाड में भारतीय व जापानी हिस्सेदारी को कम कर रहा है. क्या यूके क्वाड का हिस्सा होगा या AUKUS स्वतंत्र निकाय के रूप में रहेगा, ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर की जरूरत है.

कोरोना वायरस महामारी

लगभग 20 महीनों से दुनिया कोरोना वायरस की वजह से बुरी तरह प्रभावित है और दो सबसे अधिक प्रभावित देश संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत हैं. दोनों देश क्वाड (QUAD) के महत्वपूर्ण घटक हैं. दुनिया आपसी सहयोग की योजनाओं और कोविड राहत के लिए मदद के बारे में सुनना चाहेगी, जो न केवल क्वाड सदस्यों को, बल्कि एशिया प्रशांत की अन्य अर्थव्यवस्थाओं को भी दी जा सकती है. क्वाड सदस्यों में तीन देश (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) विकसित हैं, जबकि भारत के पास सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माण क्षमता है, जो मानवता की मदद कर सकती है. क्वाड स्टेटमेंट में भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी का भी पता लगाने की संभावना है.

ताइवान को लेकर उलझन की स्थिति

एशिया प्रशांत के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक ताइवान या रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थिति है. अभी तक इसे अंतरराष्ट्रीय निकायों द्वारा एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी गई है और यह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. ड्रैगन को रोकने में ताइवान अहम भूमिका निभा सकता है, जिसे दुनिया को समझना चाहिए. यह एक गंभीर सवाल है कि ताइवान क्वाड (QUAD) का हिस्सा कैसे हो सकता है या क्वाड को अपना लक्ष्य हासिल करने में कैसे मदद कर सकता है? रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) के बारे में चीन काफी मुखर रहा है और क्वाड नेताओं को कोई भी घोषणा करने से पहले इसकी प्रतिक्रियाओं का भी अनुमान लगाना चाहिए. ताइवान की 24 मिलियन यानी 2.4 करोड़ से अधिक आबादी क्वाड को उम्मीद के साथ देख रही है, क्योंकि यह क्षेत्र अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है.

क्वाड (QUAD) के चारों देशों के चीन पर अलग-अलग विचार हैं. ऑस्ट्रेलिया चीन को व्यापार में अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है और दोनों देशों के बीच विवाद अब तक व्यापार तक ही सीमित रहा है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) चीन को दुनिया के लिए खतरा करार देता रहा है. जापान का चीन के साथ क्षेत्रीय और आर्थिक विवाद दोनों हैं, वहीं भारत ने एक बड़ा युद्ध लड़ा है और ड्रैगन के साथ आर्थिक व सैन्य संघर्ष दोनों में लगा हुआ है. ऐसे समय में जब दुनिया अभी भी चीन में उत्पन्न महामारी से उबर रही है, सभी की निगाहें क्वाड शिखर सम्मेलन (QUAD Summit) के परिणाम और इस चतुर्भुज गठबंधन (Quadrilateral Coalition) की सफलता पर टिकी हैं.

(लेखक मेजर अमित बंसल (रि.) रक्षा विशेषज्ञ हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ आतंरिक सुरक्षा की भी गहरी समझ रखते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं.)

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