Jaipur : विधानसभा (Rajasthan Assembly) में कभी एक दूसरे के खिलाफ तल्ख भाषा से तनाव दिखता है तो कभी विधायकों के शब्द बाण चलते हैं, लेकिन हमेशा ही सदन का माहौल तनावपूर्ण नहीं होता. कभी-कभार संदन में विधायक एक-दूसरे की तारीफ भी करते हैं. हालांकि इस तारीफ के अंदाज़ में भी नेता चुटकियां लेना नहीं छोड़ते.
इसी माहौल में प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल (Shanti Dhariwal) की तारीफ की. राठौड़ ने कहा कि वे धारीवाल के बुद्धि और सामर्थ्य को धन्य मानते हैं. प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ (Rajendra Rathore) ने कहा कि इतने छोटे समय के लिए बुलाये गए विधानसभा सत्र में भी आपने 9 विधेयक सदन के पटल पर रख दिए.
राठौड़ ने धारीवाल के हुनर की तारीफ करने के साथ ही चुटकी भी ली. उन्होंने कहा कि इस दुनिया में जो आता है उसको एक ना एक दिन दुनिया छोड़ कर जाना भी होता है. राठौड़ ने धारीवाल को आग्रहपूर्वक कहा कि जब आप इस दुनिया से रुखसत होने लगो, तो उससे पहले अपने शीश का दान भी कर देना. राठौड़ ने कहा कि ऐसे शीश का शोध करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि इतनी बुद्धि और सामर्थ्य कहां से आया?
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राठौड़ बोले – कहां से आती है सभी विभागों की जानकारी? कैसे देते हो बिना तर्क जवाब?
राठौड़ ने कहा कि मंत्री शांति धारीवाल के बारे में लोगों को पता चलना चाहिए कि इस सदन में भी महाभारत काल के संजय जैसा एक व्यक्ति था, जिसे सभी विभागों के बारे में जानकारी थी. उन्होनें कहा कि लोगों को यह भी पता लगना चाहिए कि किस तरह एक मंत्री बिना तर्क के ही विधेयक पर हुई बहस का जवाब भी दे दिया करते थे. राठौड़ ने कहा कि धारीवाल के शीश के दान की घोषणा से ही यह संभव हो सकता है. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना भी की.
दुनिया में आज तक एक ही हुआ है शीश का दानी
राजेंद्र राठौड़ ने सदन में चुटकी लेते हुए शांति धारीवाल से उनके शीश का दान करने की बात तो कह दी, लेकिन दुनिया में आज तक एक ही ‘शीश का दानी’ हुआ है. महाभारत काल में ‘शीश के दानी’ का जिक्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के रूप में आता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत के युद्ध के समय पांडु पुत्र भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने कमजोर सेना का साथ देने का संकल्प लिया था, लेकिन श्री कृष्ण ने उसे अपने शीश का दान करने के लिए प्रेरित किया और महाभारत के युद्ध से पहले ही बर्बरीक ने अपने शीश का दान कर दिया था. वहीं, बर्बरीक आज खाटू श्यामजी के रूप में दुनिया भर में मान्यता रखते हैं और लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं.