शिमला हिमदेव न्यूज़ 22 सितंबर, 2022: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद विश्वविद्यालय इकाई द्वारा वीरवार दोपहर को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सभागार में द कश्मीर फाइल्स मूवी का आयोजन किया गया। विद्यार्थी परिषद द्वारा आयोजित इस मेगा मूवी शो को विश्वविद्यालय के समस्त छात्र समुदाय का भरपूर सहयोग मिला। इकाई अध्यक्ष आकाश नेगी ने छात्रों को विवि सभागार में सम्बोधित करते हुए कहा कि 19 जनवरी 1990 के दिन कश्मीर के इतिहास का सबसे काला अध्याय लिखा गया। अपने ही घर से कश्मीरी पंडितों को बेदखल कर दिया। सड़कों पर नारे लग रहे थे, ‘कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाहू अकबर कहना है’।कश्मीर की मस्जिदों से उस रोज अज़ान के साथ-साथ कुछ और नारे भी गूंजे। ‘यहां क्या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाहू अकबर कहना है’ और ‘असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान’ मतलब हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर अपने मर्दों के बिना। यह संदेश था कश्मीर में रहने वाले हिंदू पंडितों के लिए। ऐसी धमकियां उन्हें पिछले कुछ महीनों से मिल रही थीं।सैकड़ों हिंदू घरों में उस दिन बेचैनी थी। सड़कों पर इस्लाम और पाकिस्तान की शान में तकरीरें हो रही थीं। हिंदुओं के खिलाफ जहर उगला जा रहा था। कश्मीरी हिन्दुओं पर वो रात बड़ी भारी गुजरी, सामान बांधते-बांधते, अपने पुश्तैनी घरों को छोड़कर कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन का फैसला किया। उन्होंने कहा कि अगर आंकड़ों से कश्मीरी पंडितों का दर्द बयां हो पाता तो समझिए। 20वीं सदी की शुरुआत में लगभग 10 लाख कश्मीरी पंडित थे। आज की तारीख में 9,000 से ज्यादा नहीं हैं। 1941 में कश्मीरी हिंदुओं का आबादी में हिस्सा 15% था। 1991 तक उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.1% रह गई थी। जब किसी समुदाय की आबादी 10 लाख से घटकर 10 हजार से भी कम रह जाए तो उसके लिए एक ही शब्द है नरसंहार। पाकिस्तान का वक्त बताने लगी थीं हिंदू घरों की घड़ियां दीवारों पर पोस्टर्स लगाए गए कि हिंदुओं कश्मीर छोड़ दो। हिंदू घरों पर लाल घेरा बनाया गया। उसके बाद श्रीनगर के कई इलाकों में हिंदुओं के मकान आग के हवाले कर दिए गए। हिंदू महिलाओं को तिलक लगाने पर मजबूर किया गया। उनके साथ ब्लात्कार की वारदातें आम हो गई थीं। उपद्रवी किसी भी घर में घुस जाते और लूटपाट व अत्याचार करते। घड़ियों को पाकिस्तान स्टैंडर्ड टाइम के हिसाब से सेट करवाया जाता। स्थानीय सरकार पंगु थी। उन्होंने कहा कि पिछले 31 साल में कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाने की कई कोशिशें हुईं, मगर नतीजा सिफर रहा। 1992 के बाद हालात और खराब होते गए। हिंदुओं को भी इस बात का अहसास है कि घाटी अब पहले जैसी नहीं रही। 5 अगस्त, 2019 को जब भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया तो कश्मीरी पंडित बेहद खुश थे। मगर उनकी वापसी के अरमान अब भी अरमान ही हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी परिषद का विवि सभागार में इस मूवी को दिखाने का एकमात्र उद्देश्य कश्मीरी हिन्दुओं का दर्द पूरे समाज को दिखाने का है। कार्यक्रम के अंत में आकाश ने विवि के समस्त छात्र समुदाय का इस मेगा मूवी शो के सफल आयोजन के लिए धन्यवाद व्यक्त किया।
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