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सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक

आज सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक नाटक गेटी प्रेक्षागृह में प्रस्तुत किया गया| जिसके नाटककार सुरेंद्र वर्मा थे निर्देशक केदार ठाकुर द्वारा प्रस्तुति संकल्प रंगमंडल द्वारा गेटी ड्रामाटिक सोसाइटी के सौजन्य से किया गया| नाटक मलल राज्य की पृष्ठभूमि पर रचा गया लेकिन वर्तमान में भी नाटक सर्वथा प्रासंगिक है, नाटक का नायक राजा ओकाक नपुंसक है| उसका विवाह एक गरीब कन्या से करवा दिया जाता हैं|लेकिन 5 वर्ष बीतने के बाद भी वह अपनी पत्नी शीलवती को संतान नहीं दे पाता|क्योंकि वह नपुंसक है और राज्य को उत्तराधिकारी के रूप में संतान चाहिए  और संतान प्राप्त करने के लिए रानी शीलवती को नियोग प्रथा के अंतर्गत गर्भधारण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है राज्य के कोने कोने में यह घोषणा कर दी जाती है| अब रानी को किसी एक का अपने पति का चुनाव करना है, समय बिल्कुल नजदीक है|अब रानी को इस प्रथा से गुजरना पड़ता है|मर्यादा धर्मशील और वैवाहिक बंधन में जकड़ी नायिका  स्वयं को असहाय स्थिति में पाती है और 1 सप्ताह का घटनाक्रम  उसे भीतर तक झकझोर देता है| नाटक के पहले अंक में शीलवती मर्यादाओं और  विवशताओ में घिरी दिखती है जबकि तीसरे अंक तक वह विद्रोही होकर उभरती है मर्यादा धर्म,शील और वैवाहिक बंधन को वात्सल्य और मातृत्व से वंचित नायिका शीलवती का आक्रोश अंत तक चरम पर आ जाता है| जो सर्वथा न्यायोचित है| नाटक में सभी पात्रों  का अभिनय बेह्तरीन था|

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