



Patna: राज्य की राजधानी में स्थित ‘गांधी मैदान’ अपने आप में पूरी दास्तान है. कई हजारों की भीड़ को खुद में समेट लेने वाला और उस भीड़ के सामने जो भी खड़ा हो उस आदमी को लीडर बना देने वाला ये मैदान, महज एक खुली जगह नहीं है. यह विरासत है, संस्कृति है और बदलाव की हुंकार भी है. कभी किसी जमाने में अंग्रेज अफसरों और अंग्रेजीदां बाबुओं की हवाखोरी की जगह रहे गांधी मैदान में न जाने कहां से इतनी ताकत रही है कि उसने जमाने में चल रही हवा बदल दी है.
स्वतंत्रता दिवस समारोह का है स्थान
गांधी मैदान की बात इसलिए, क्योंकि 2 अक्टूबर नजदीक है और जब-जब बापू के महात्मा गांधी बनने का जिक्र होगा, पटना के गांधी मैदान का जिक्र जरूर किया जाएगा. यह मैदान हमेशा से देश की महत्वपूर्ण घटनाओं का मूक गवाह रहा है. इसका नाम शुरू से महात्मा गांधी के नाम पर नहीं था. महात्मा गांधी की हत्या के बाद इसका नाम 1948 में स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगांठ से पहले उनके सम्मान में उनके नाम पर कर दिया गया था. अभिलेखीय दस्तावेजों के अनुसार, अंडाकार आकार का ये मैदान आजादी के बाद से राज्य में स्वतंत्रता दिवस समारोह का स्थान रहा है. पहले इसे ‘बांकीपुर मैदान’ या ‘पटना लॉन’ कहा जाता था.
एक शिक्षक ने की थी मांग
इसका नाम महात्मा गांधी के नाम पर कैसे पड़ा. इसके बारे में एक मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है. बिहार राज्य अभिलेखागार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक मीडिया बातचीत में कहा था कि गांधी मैदान का नाम बदलने का अनुरोध उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर के एक स्कूल शिक्षक ने महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद किया था. अभिलेखागार के रिकॉर्ड के अनुसार, मुजफ्फरपुर जिले के एक शिक्षक ने सरकारी अधिकारियों को एक पत्र भेजा था, जिसमें बापू के सम्मान में बांकीपुर मैदान का नाम बदलने का अनुरोध किया गया था. उन्होंने गांधी लॉन, गांधी पार्क या महात्मा गांधी मैदान सहित विभिन्न नामों का उपयोग करने का सुझाव दिया था. हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि इसमें बापू का नाम होना चाहिए.
महात्मा गांधी ने की थी विशाल जनसभा
चंपारण सत्याग्रह, जहां भारत का पहला सत्याग्रह शुरू किया गया था. इसके बाद बापू ने विशाल जनसभा (जनवरी, 1918) इस मैदान में आयोजित की थी. तभी से इसे गांधी मैदान कहा जाने लगा था. इस क्रांति के स्मारक के तौर पर महात्मा गांधी की सबसे ऊंची (सत्तर फुट की) प्रतिमा यहीं बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने स्थापित की है. इस मैदान पर साल 1938 में तत्कालीन मुस्लिम लीग के प्रमुख और देश के बंटवारे के जिम्मेदार मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ एक एतिहासिक रैली को संबोधित किया था.
सुभाष चंद्र बोस, जेपी का इतिहास भी है यहां
साल 1939 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी नई नवेली पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक की पहली रैली इसी ऐतिहासिक मैदान में की थी. इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जेबी कृपलानी, ईएमएस नंबूदरीपाद, राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी सहित देश के कई जाने माने नेताओं की रैलियों का भी यह मैदान गवाह रहा है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 5 जून, 1974 को इसी मैदान पर संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया था. उन्हीं की अगुआई में आगे बढ़े लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और सुशील मोदी आज राज्य के कद्दावर नेताओं में हैं.