(अरनिया के जोगी) मेवात में धनतेरस को जमदिया भी कहते हैं। यानि यमराज के लिए दीपक जलाना, अर्थात मृत्यु से कहना कि
हे पाशधारी काल ! जब मर्जी हो तब आ जाना ,मैं तुमसे नहीं डरता, मैं दीपक जलाकर तुम्हारा स्वागत करता हूं ।
संयोग से जमदिए कि सुबह बेहद संगीतमय रही।
अरनिया (बांदीकुई के पास एक छोटा सा गांव) के दो युवा जय राम जोगी और भगवान जोगी घर के द्वार पर आकर भरथरी गाने लगे । उनका स्वर इतना मीठा था कि मधु जी ने उन्हें तुरंत भीतर बुला लिया ।
और इसके बाद धनतेरस की सुबह सुरों की सुबह बन गई। भगवान और जयराम ने गोपीचंद भरथरी के गीत सुनाए। गोरखनाथ और दुल्ला धाडी की बातें की।
भगवान ने बताया कि वे मशक, जोगिया सारंगी, ढोलकी, चिमटा, मंजीरा और पेटी पर गाते बजाते हैं ।
चाय पीते पीते भगवान योगी ने एक जोरदार बात कही
” अगर आज के जमाने में भगवान मुकुट बांधकर दर्शन देने लगे तो पैसे वाले उन्हें पकड़ कर कमरे में बंद कर देंगे ताकि कोई दूसरा उनके दर्शन नकर सके।
मधु जी तो उन अजनबी लोक गायको की बातों और गाने से इतनी प्रभावित प्रभावित हुई कि उन्हें अंगवस्त्रम् भी भेंट कर दिए।
हम यह बड़े फ़क्र से कह सकते हैं कि हमारी लोक संस्कृति में बड़ी ताकत है । सुरीले लोकगायक गांव-गांव बसते हैं।
जरूरत उन्हें तलाश ने की है ।
भगवान और जय राम को हम संगत में बुलाएंगे…
आप इन्हें सुनने जरूर आना…
अशोक राही