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Taliban want to address United Nations General Assembly, seek to speak to the world leaders | तालिबान को मिलेगा संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देने का मौका? सिफारिश पर हो रहा विचार

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 76वें अधिवेशन में भाषण देंगे. ये अधिवेशन इस बार 30 सितंबर तक चलने वाला है. इससे जुड़ी एक बड़ी खबर ये सामने आई है कि ऐसा हो सकता है कि इस बार के अधिवेशन में तालिबान भी भाषण दे.

तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी (Amir Khan Muttaqi) ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को एक चिट्ठी लिखी है और इस चिट्ठी में उन्होंने कहा है कि तालिबान (Taliban) को भी इस अधिवेशन में दुनिया के नेताओं को संबोधित करने की इजाजत मिलनी चाहिए. तालिबान ने इसके लिए अपने प्रवक्ता सुहेल शाहीन (Suhail Shaheen) को संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान का राजदूत भी नियुक्त कर दिया है. तालिबान की इस अपील को संयुक्त राष्ट्र की क्रेडेंशियल्स कमेटी (Credentials Committee) के पास भेजा गया है और अब ये फैसला कमेटी के हाथ है कि तालिबान संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देगा या नहीं?

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तालिबान को चीन का खुला समर्थन

इस कमेटी में अमेरिका, रूस और चीन समेत कुल 9 देश हैं और चीन तो इसके लिए तालिबान का समर्थन भी कर रहा है.

इधर, संयुक्त राष्ट्र ने चीन के दबाव में तालिबान की सरकार के 14 मंत्रियों को यात्रा प्रतिबंध में छूट दे दी है. यानी अब ये नेता दूसरे देशों में जाकर अपनी सरकार के लिए समर्थन मांग सकेंगे. चीन तो ये चाहता था कि तालिबान को ये छूट 180 दिन की मिले, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इसे नहीं माना और अब 90 दिनों की छूट इन 14 आतंकवादियों को ट्रैवेल बैन से मिल गई है. इसके तहत अब 23 सितंबर यानी आज से 22 दिसंबर तक ये नेता अफगानिस्तान से बाहर जा सकेंगे और कतर की राजधानी दोहा में संयुक्त राष्ट्र के साथ ही शांति वार्ता कर सकेंगे.

तालिबान को मिलेगी UNGA में बोलने की इजाजत? 

कहने का मतलब ये है कि संयुक्त राष्ट्र के मंच पर तालिबान को लाने के लिए चीन पूरी कोशिश करेगा और वो तो इस क्रेडेंशियल कमेटी का हिस्सा भी है. हमें लगता है कि अगर तालिबान को इस बार भाषण देने की मंजूरी इस कमेटी से नहीं मिली तो अगले साल या उसके अगले साल ऐसा हो ही जाएगा और जिस दिन ऐसा होगा, ये पूरी दुनिया के करोड़ों लोगों के साथ मजाक होगा, जो अमन पसंद हैं और जो शांति चाहते हैं. 

70 टीचर्स का सामूहिक इस्तीफा

तालिबान की जब बात हो रही है तो आज आपको ये भी जानना चाहिए कि काबुल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले 70 टीचर्स ने एक साथ इस्तीफा क्यों दे दिया. ये टीचर्स इसलिए नाराज थे क्योंकि तालिबान ने काबुल यूनिवर्सिटी पर एक ऐसा वाइस चांसलर थोप दिया, जिसके पास सिर्फ बैचलर ऑफ आर्ट्स (Bachelor of Arts) की डिग्री है. जबकि पिछले वाइस चांसलर मुहम्मद उस्मान बाबरी के पास Phd की डिग्री थी.

अफगानिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुहम्मद उस्मान बाबरी को उनके पद से इसलिए हटा दिया गया क्योंकि वो उच्च शिक्षा के हक में थे. हालांकि उन्हें हटाने के बाद अब काबुल यूनिवर्सिटी तालिबान के खिलाफ विरोध का नया चेहरा बन गई है और ऐसी संभावना है कि आने वाले दिनों में वहां और लोग यूनिवर्सिटी छोड़ सकते हैं.

VC का  ऐसा विरोध क्यों? 

काबुल यूनिवर्सिटी के नए वाइस चांसलर मुहम्मद अशरफ गैरत का विरोध इसलिए भी हो रहा है क्योंकि कुछ साल पहले उन्होंने अफगानिस्तान में पत्रकारों की हत्या को जायज ठहराया था और कहा था कि सारे पत्रकार जासूस होते हैं और उन्हें मर जाना चाहिए. इससे आप समझ सकते हैं कि वाइस चांसलर के लिए तालिबान की पसंद का पैमाना क्या है?

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